कैसा क्रूर भाग्य का चक्कर कैसा विकट समय का फेर कहल | हिंदी कविता

"कैसा क्रूर भाग्य का चक्कर कैसा विकट समय का फेर कहलाते हम- बीकानेरी कभी न देखा- बीकानेर जन्मे ‘बीकानेर’ गाँव में है जो रेवाड़ी के पास पर हरियाणा के यारों ने कभी न हमको डाली घास हास्य-व्यंग्य के कवियों में लासानी समझे जाते हैं हरियाणवी पूत हैं- राजस्थानी समझे जाते हैं ~अल्हड़ बीकानेरी ©हिंदीवाले"

 कैसा क्रूर भाग्य का चक्कर
कैसा विकट समय का फेर
कहलाते हम- बीकानेरी
कभी न देखा- बीकानेर

जन्मे ‘बीकानेर’ गाँव में
है जो रेवाड़ी के पास
पर हरियाणा के यारों ने
कभी न हमको डाली घास

हास्य-व्यंग्य के कवियों में
लासानी समझे जाते हैं
हरियाणवी पूत हैं-
राजस्थानी समझे जाते हैं
~अल्हड़ बीकानेरी

©हिंदीवाले

कैसा क्रूर भाग्य का चक्कर कैसा विकट समय का फेर कहलाते हम- बीकानेरी कभी न देखा- बीकानेर जन्मे ‘बीकानेर’ गाँव में है जो रेवाड़ी के पास पर हरियाणा के यारों ने कभी न हमको डाली घास हास्य-व्यंग्य के कवियों में लासानी समझे जाते हैं हरियाणवी पूत हैं- राजस्थानी समझे जाते हैं ~अल्हड़ बीकानेरी ©हिंदीवाले

कैसा क्रूर भाग्य का चक्कर
कैसा विकट समय का फेर
कहलाते हम- बीकानेरी
कभी न देखा- बीकानेर

जन्मे ‘बीकानेर’ गाँव में
है जो रेवाड़ी के पास
पर हरियाणा के यारों ने

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