ये उदासी शायद मेरी मुकद्दर हो।
हो न हो ये गम खुशी से बेहतर हो।
मंदिर जाऊंगा तो छू कर देखूंगा।
शायद खुदा सच मुच में पत्थर हो।
मुझसे हक़ीक़त कहो या फसाना।
मेरे लिए इनमें ना कोई अंतर हो।
ज़िंदगी की कड़वाहटों से जो मुक्ति दे।
बाबा ! दे दो मुझे अगर कोई मंतर हो।
आप मिलों मुझसे तो ऐसे मिलो।
आप जो बाहर हो वही भीतर हो।
ज़िंदादिली की ऐसी मिसाल बनो जय।
दिल में आग और आंखें में समंदर हो।
दिल पे ज़ख़्म, राह में ठोकरें खाई है।
तब कहीं जाके ग़ज़ल की फन पाई है।
बेटियां आज भी कोख में मर जाती है।
हुकूमत कहती है इनमें ना कोई अंतर हो।
©mritunjay Vishwakarma "jaunpuri"
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