मन को प्रेम-रोग लगाए बैठे है ,
सुहाने सपने भी सजाए बैठे है।
©आराधना
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मन को प्रेम-रोग लगाए बैठे है ,
सुहाने सपने भी सजाए बैठे है।
शाम होने को है तुम्हारे इंतेज़ार में ,
किवाड़ पर पलकें बिछाए बैठे है।
प्रियतम प्रेम में तेरे सुध-बुध खो के ,
हम अपनी जान भी गवाएँ बैठे है।