तन्हा रातों को जब बैठता हूं छत पर चांद में अक्स नज | हिंदी कविता

"तन्हा रातों को जब बैठता हूं छत पर चांद में अक्स नज़र आता है कोई ✍️....रितेश"

 तन्हा रातों को जब बैठता हूं छत पर
चांद में अक्स नज़र आता है कोई
✍️....रितेश

तन्हा रातों को जब बैठता हूं छत पर चांद में अक्स नज़र आता है कोई ✍️....रितेश

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