सियासत को गरीबों से रबत कब है इनके लिए | हिंदी शायरी

"सियासत को गरीबों से रबत कब है इनके लिए तो साहिबे माल ही सब है मजलुम के हक में कोई बात कर हाकिम गरीब के मसीहा क्यु सिल बैठा लब है किसी ने जान दे दी है भरी ठंड में इस पे भी कोई तंज नहीं कैसा अदब है सुला अपनों को आग उगलती शबो में खुद मखमल में है खुदा ये कैसा अजब है मूसा सा कोई भेज दुनिया में मौला इक फिरोन खुद को समझ बैठा रब है ✍शादाब कमाल ©शायर शादाब कमाल"

 सियासत  को   गरीबों   से   रबत  कब है 
इनके  लिए  तो  साहिबे  माल  ही  सब है

मजलुम के हक में कोई  बात कर हाकिम
गरीब के  मसीहा  क्यु  सिल  बैठा  लब है

किसी  ने   जान  दे   दी   है  भरी  ठंड में
इस पे भी कोई तंज नहीं  कैसा  अदब  है

सुला अपनों  को  आग  उगलती  शबो  में 
खुद मखमल में है  खुदा ये कैसा अजब है 

मूसा  सा  कोई   भेज  दुनिया   में   मौला 
इक   फिरोन  खुद को  समझ  बैठा रब है
                ✍शादाब कमाल

©शायर शादाब कमाल

सियासत को गरीबों से रबत कब है इनके लिए तो साहिबे माल ही सब है मजलुम के हक में कोई बात कर हाकिम गरीब के मसीहा क्यु सिल बैठा लब है किसी ने जान दे दी है भरी ठंड में इस पे भी कोई तंज नहीं कैसा अदब है सुला अपनों को आग उगलती शबो में खुद मखमल में है खुदा ये कैसा अजब है मूसा सा कोई भेज दुनिया में मौला इक फिरोन खुद को समझ बैठा रब है ✍शादाब कमाल ©शायर शादाब कमाल

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