*परिणामों का दौर*
देखा है मैंने इन दिनों,
चल रहा दौर परिणामों का
सफलता जिनके घर आई, खुशियाँ सिर्फ उसने पाई
बधाई का ताता लगता हर पल,हर तरफ बटी मिठाई
अभी उन्हीं के किस्से, तारीफ़, सुनाई दे रहे सभी से
मेहरबानी अच्छी खुदा की, मेहनत किसी की रंग लाई
जब देखा मैंने द्विज द्वार, अंधेर घर वहीं पसरी चटाई
उम्मीदों का टूटा इंसान, बातें उसकी किसने सुनाई
मंजिल पाने की चाह में मेहनत वो भी तो करता था
क्या कमी रही जो खुदा ने उसकी किस्मत आजमाई
उठकर चलने का हौसला अभी भी कायम है उसमें
टूटी उम्मीद से सीखकर, एक उम्मीद नई फ़िर बनाई
ढलती शाम गुजरने पर एक रोज सवेरा फ़िर आएगा
धीरे-धीरे चलने पर, वहीं कछुआ मंजिल पा जाएगा
"कछुआ मंजिल पा जाएगा"
©WRITER AKSHITA JANGID
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