जो कहती है दुनिया, तू बदलेगा क्या
टूटे रिश्तों को बांध के रख लेगा क्या
बंदिशों में बंधे जो तेरे ये सपने पड़े है
खातिर उनके अपनों से लड़ लेगा क्या
किस्सा अधूरा भी बेशक वो तूने छोड़ा
अधूरे जज़्बातो को कोई पढ़ लेगा क्या
मंजिल चुनी तो राह भी अपनानी होगी
तू बिना निकले घर से कुछ पा लेगा क्या
मन में तेरे आंधी, कहीं तूफान भी होगा
बढ़ते इस वक़्त में सबको रोक लेगा क्या
अपना भी आसाँ कहाँ रहा सफ़र "अक्षी"
कोई खुद खोकर खुद को लिख लेगा क्या
बाहरी दुनिया की जब गुम हों इस भीड़ में
कोई हमें भी फ़िर यूँ पहचान लेगा क्या
"जो कहती है दुनिया, तू बदलेगा क्या"
©WRITER AKSHITA JANGID
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