हर बार इतना क्यों सोचते हो
चलो कभी हार भी गए तो क्या
पर खुद से भी क्यों हारते हो
ये अंधेरा तो कुछ पल का ही मेहमान है
ये हार भी समझो कुछ पल का ईनाम है
पंख लगे हैं होसलो का फिर क्यों घायल बैठे हो
तुम्हें तो मंजिल फतेह करनी है और तुम हार से चिपके बैठे हो
जिंदगी का जंग है मेरे यार, दौडना भी तुम्हीं को है
और गिरकर संभलना भी तुम्हीं को है।।
-bebak_poetry
©bebak_poetry
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