संघर्ष
है बेड़ियों में जकड़ा हुआ,
है खुद से भी बिछड़ा हुआ।
खुद की उड़ान को है ना जानता,
बस आसमान को है निहारता।।
खुद से ही है कुछ हौसला उसका,
अब हार ना उसको है मानना।
कर सौ वार उन सलाखों पर,
कैद से आजाद वो होना चाहता।।
अब नींव भी कुछ हिल चली है,
अब आस भी कुछ बढ़ चली है।
प्रयत्न भी अब कुछ बढ़ चलें है,
इस जोश में अब पंख भी फड़फड़ा रहे।।
अजेय अब निराश ना होना चाहता,
खुद का विश्वास ना खोना चाहता।
कुछ कल्पना थी मन में उसके,
उनको अब बस साकार करना वो चाहता।।
अजेय
संघर्ष
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