Sachchidanand Tripathi

Sachchidanand Tripathi Lives in Delhi, Delhi, India

poet , engineer

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संघर्ष है बेड़ियों में जकड़ा हुआ, है खुद से भी बिछड़ा हुआ। खुद की उड़ान को है ना जानता, बस आसमान को है निहारता।। खुद से ही है कुछ हौसला उसका, अब हार ना उसको है मानना। कर सौ वार उन सलाखों पर, कैद से आजाद वो होना चाहता।। अब नींव भी कुछ हिल चली है, अब आस भी कुछ बढ़ चली है। प्रयत्न भी अब कुछ बढ़ चलें है, इस जोश में अब पंख भी फड़फड़ा रहे।। अजेय अब निराश ना होना चाहता, खुद का विश्वास ना खोना चाहता। कुछ कल्पना थी मन में उसके, उनको अब बस साकार करना वो चाहता।। अजेय

#ajeyawriting #kalakaksh #hindinama #kavita              संघर्ष

है बेड़ियों में जकड़ा हुआ,
है खुद से भी बिछड़ा हुआ।
खुद की उड़ान को है ना जानता,
बस आसमान को है निहारता।।
             खुद से ही है कुछ हौसला उसका,
             अब हार ना उसको है मानना।
             कर सौ वार उन सलाखों पर,
             कैद से आजाद वो होना चाहता।।
अब नींव भी कुछ हिल चली है,
अब आस भी कुछ बढ़ चली है।
प्रयत्न भी अब कुछ बढ़ चलें है,
इस जोश में अब पंख भी फड़फड़ा रहे।।
             अजेय अब निराश ना होना चाहता,
             खुद का विश्वास ना खोना चाहता।
             कुछ कल्पना थी मन में उसके,
             उनको अब बस साकार करना वो चाहता।।

                                   अजेय

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#ajeyawriting #DearZindagi

Happy Dussehra दशहरा आते ही सब रावण फूंकते हैं, जिसे देखो वही सब राम पूजते हैं। किस हक से तुम उसे जलाते हो, तुम तो उससे भी घिनौने कर्म कर जाते हो। वो तो दस शीश लिए फिरता था, तुम तो इक शीश में ही रावण बन जाते हो। कुछ तो सिखो रावण से तुम भी, महाज्ञानी पंडित था वो, महानीच पापी हो तुम। राम बनें फिरते हो तुम, पर कलयुग की इस रामायण में, रावण के चरणों की धूल न हो तुम। कर लो आत्मचिंतन अब तुम सब, सतयुग के राम न सही, सतयुग के रावण बन कर। तुम लो प्रतिज्ञा हर सीता की रक्षा का, हर सूपर्नखा का भाई बन कर। फिर फूंको तुम रावण हर दिन, तुम अपने आंगन में।। अजेय

#रावण #ajeyawriting  Happy Dussehra  दशहरा आते ही सब रावण फूंकते हैं,
जिसे देखो वही सब राम पूजते हैं।
किस हक से तुम उसे जलाते हो,
तुम तो उससे भी घिनौने कर्म कर जाते हो।
वो तो दस शीश लिए फिरता था,
तुम तो इक शीश में ही रावण बन जाते हो।
कुछ तो सिखो रावण से तुम भी,
महाज्ञानी पंडित था वो,
महानीच पापी हो तुम।
राम बनें फिरते हो तुम,
पर कलयुग की इस रामायण में,
रावण के चरणों की धूल न हो तुम।
कर लो आत्मचिंतन अब तुम सब,
सतयुग के राम न सही,
सतयुग के रावण बन कर।
तुम लो प्रतिज्ञा हर सीता की रक्षा का,
हर सूपर्नखा का भाई बन कर।
फिर फूंको तुम रावण हर दिन,
तुम अपने आंगन में।।

                 अजेय

दशहरा आते ही सब रावण फूंकते हैं, जिसे देखो वही सब राम पूजते हैं। किस हक से तुम उसे जलाते हो, तुम तो उससे भी घिनौने कर्म कर जाते हो। वो तो दस शीश लिए फिरता था, तुम तो इक शीश में ही रावण बन जाते हो। कुछ तो सिखो रावण से तुम भी, महाज्ञानी पंडित था वो, महानीच पापी हो तुम। राम बनें फिरते हो तुम, पर कलयुग की इस रामायण में, रावण के चरणों की धूल न हो तुम। कर लो आत्मचिंतन अब तुम सब, सतयुग के राम न सही, सतयुग के रावण बन कर। तुम लो प्रतिज्ञा हर सीता की रक्षा का, हर सूपर्नखा का भाई बन कर। फिर फूंको तुम रावण हर दिन, तुम अपने आंगन में।। अजेय #gif

#ajeyawriting #रावण #devotion #dashara #ravan  दशहरा आते ही सब रावण फूंकते हैं,
जिसे देखो वही सब राम पूजते हैं।
किस हक से तुम उसे जलाते हो,
तुम तो उससे भी घिनौने कर्म कर जाते हो।
वो तो दस शीश लिए फिरता था,
तुम तो इक शीश में ही रावण बन जाते हो।
कुछ तो सिखो रावण से तुम भी,
महाज्ञानी पंडित था वो,
महानीच पापी हो तुम।
राम बनें फिरते हो तुम,
पर कलयुग की इस रामायण में,
रावण के चरणों की धूल न हो तुम।
कर लो आत्मचिंतन अब तुम सब,
सतयुग के राम न सही,
सतयुग के रावण बन कर।
तुम लो प्रतिज्ञा हर सीता की रक्षा का,
हर सूपर्नखा का भाई बन कर।
फिर फूंको तुम रावण हर दिन,
तुम अपने आंगन में।।

                 अजेय
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अच्छे दिन मुद्दतों बाद तो इक आस बनीं थीं, इसी आस में इक सरकार बनीं थी। तुमने वादे भी किए थे अच्छे दिनों के, इसलिए तुम्हारे हर निर्णय में , हमारी हां में हां भी मिलीं थीं। कहां है वो काला धन जो तुम, अपनी जेबों में लिए फिरते हो? कहां है वो रोजगार जो तुमने, बेरोजगारों के लिए बुनें थे? अब तो हद हो गई महंगाई की भी, रुपया आसमान छू रहा और, भूखे पाताल में समा रहे। क्यों है अभी तक धारा ३७०, जो वादे भारतीय एकता के लिए किए थे? क्यों है अभी तक मजहबी रंजिश? जो तुम्हारे कर्मों का ही फल है। गौ रक्षा से निकल कर तो देखो, बहू बेटियों की रक्षा भी जरूरी है। अच्छे दिनों की आस में कई साल काट दिए, तुम बोफोर्स-राफेल पे ही अटके रहे, यहां किसानों को कर्ज ने मार दिए।। अजेय

#poetrycommunity #ajeyawriting #hindipoetry #urdupoetry #Corruption #kavishala  अच्छे दिन
मुद्दतों बाद तो इक आस बनीं थीं,
इसी आस में इक सरकार बनीं थी।
तुमने वादे भी किए थे अच्छे दिनों के,
इसलिए तुम्हारे हर निर्णय में ,
हमारी हां में हां भी मिलीं थीं।
कहां है वो काला धन जो तुम,
अपनी जेबों में लिए फिरते हो?
कहां है वो रोजगार जो तुमने,
बेरोजगारों के लिए बुनें थे?
अब तो हद हो गई महंगाई की भी,
रुपया आसमान छू रहा और,
भूखे पाताल में समा रहे।
क्यों है अभी तक धारा ३७०,
जो वादे भारतीय एकता के लिए किए थे?
क्यों है अभी तक मजहबी रंजिश?
जो तुम्हारे कर्मों का ही फल है।
गौ रक्षा से निकल कर तो देखो,
बहू बेटियों की रक्षा भी जरूरी है।
अच्छे दिनों की आस में कई साल काट दिए,
तुम बोफोर्स-राफेल पे ही अटके रहे,
यहां किसानों को कर्ज ने मार दिए।।
 
                    अजेय

झुका कर शीश गुरु के चरणों में, हम उनसे ज्ञान लेते हैं। किताबी बातों के अलावा, हम उनसे जिंदगी का सार लेते हैं।। बन के नचिकेता तो देखो, गुरु हर कण में मिलेगा। खुद से भी मिलकर तो देखो, गुरु तुम में भी मिलेगा।। अजेय

#HappyTeachersday #ajeyawriting #urdupoetry #kavishala #kalakaksh #hindinama  झुका कर शीश गुरु के चरणों में,
हम उनसे ज्ञान लेते हैं।
किताबी बातों के अलावा,
हम उनसे जिंदगी का सार लेते हैं।।
बन के नचिकेता तो देखो,
गुरु हर कण में मिलेगा।
खुद से भी मिलकर तो देखो,
गुरु तुम में भी मिलेगा।।
      
           अजेय
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