Happy Dussehra दशहरा आते ही सब रावण फूंकते हैं,
जिसे देखो वही सब राम पूजते हैं।
किस हक से तुम उसे जलाते हो,
तुम तो उससे भी घिनौने कर्म कर जाते हो।
वो तो दस शीश लिए फिरता था,
तुम तो इक शीश में ही रावण बन जाते हो।
कुछ तो सिखो रावण से तुम भी,
महाज्ञानी पंडित था वो,
महानीच पापी हो तुम।
राम बनें फिरते हो तुम,
पर कलयुग की इस रामायण में,
रावण के चरणों की धूल न हो तुम।
कर लो आत्मचिंतन अब तुम सब,
सतयुग के राम न सही,
सतयुग के रावण बन कर।
तुम लो प्रतिज्ञा हर सीता की रक्षा का,
हर सूपर्नखा का भाई बन कर।
फिर फूंको तुम रावण हर दिन,
तुम अपने आंगन में।।
अजेय
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