चाह नहीं है, चाहत की, कि कोई चाहत से चाहे हमें। पत | हिंदी विचार

"चाह नहीं है, चाहत की, कि कोई चाहत से चाहे हमें। पता है,यह प्रेम है,प्रीत है, सब मोह है,एकदिन छूट जानी है। फिर क्यों?,इतना विकल है मन, क्यों?आँखों में नींद नहीं। न चाहें फिर भी क्यों?ख्याल उन्ही का है। व्यथित मन,व्याकुल हृदय, हमें झकझोरता रहा। विभिन्न प्रश्नों में उलझाता, स्वयं से ही तर्क-वितर्क भी कराता रहा। अनुमान न था,वह परिस्थिति है अब, समझ से भी परे, स्थिति है अब। ......................। ©एक राही"

 चाह नहीं है, चाहत की,
कि कोई चाहत से चाहे हमें।
पता है,यह प्रेम है,प्रीत है,
सब मोह है,एकदिन छूट जानी है।
फिर क्यों?,इतना विकल है मन,
क्यों?आँखों में नींद नहीं।
न चाहें फिर भी क्यों?ख्याल उन्ही का है।
व्यथित मन,व्याकुल हृदय,
हमें झकझोरता रहा।
विभिन्न प्रश्नों में उलझाता,
स्वयं से ही तर्क-वितर्क भी कराता रहा।
अनुमान न था,वह परिस्थिति है अब,
समझ से भी परे, स्थिति है अब।
......................।

©एक राही

चाह नहीं है, चाहत की, कि कोई चाहत से चाहे हमें। पता है,यह प्रेम है,प्रीत है, सब मोह है,एकदिन छूट जानी है। फिर क्यों?,इतना विकल है मन, क्यों?आँखों में नींद नहीं। न चाहें फिर भी क्यों?ख्याल उन्ही का है। व्यथित मन,व्याकुल हृदय, हमें झकझोरता रहा। विभिन्न प्रश्नों में उलझाता, स्वयं से ही तर्क-वितर्क भी कराता रहा। अनुमान न था,वह परिस्थिति है अब, समझ से भी परे, स्थिति है अब। ......................। ©एक राही

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