मै दफ्तर में हूं, दफ्तर में एक कैंटीन है, कैंटीन म | हिंदी कविता

"मै दफ्तर में हूं, दफ्तर में एक कैंटीन है, कैंटीन में चाय है, मै तन्हा हूं सो चाय ली है, लेकिन न तो वो चाय है, न ही वो गुफ्तगू, चाय अच्छी तब लगती है, जब साथ पीने वाले भी लाजवाब हो, और मुझसे छीन गए है वो लोग, वो पल, जो नहीं लौटेंगे कभी, एक साथ, एक जगह, चाय पर... ©Ajay Chaurasiya"

 मै दफ्तर में हूं,
दफ्तर में एक कैंटीन है,
कैंटीन में चाय है,
मै तन्हा हूं सो चाय ली है,
लेकिन न तो वो चाय है, न ही वो गुफ्तगू,
चाय अच्छी तब लगती है,
जब साथ पीने वाले भी लाजवाब हो,
और मुझसे छीन गए है वो लोग, वो पल,
जो नहीं लौटेंगे कभी, एक साथ, 
एक जगह, चाय पर...

©Ajay Chaurasiya

मै दफ्तर में हूं, दफ्तर में एक कैंटीन है, कैंटीन में चाय है, मै तन्हा हूं सो चाय ली है, लेकिन न तो वो चाय है, न ही वो गुफ्तगू, चाय अच्छी तब लगती है, जब साथ पीने वाले भी लाजवाब हो, और मुझसे छीन गए है वो लोग, वो पल, जो नहीं लौटेंगे कभी, एक साथ, एक जगह, चाय पर... ©Ajay Chaurasiya

#चाय

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