दर्द हुआ तो रो लेती हूँ...ये कहते हैं सब्र करो।
खुश हूँ अगर मैं हँस लेती हूँ... ये कहते हैं सब्र करो।।
छल-प्रपंच हो चिढ़ जाती हूँ... ये कहते हैं सब्र करो।
स्नेह मिले तो खिल जाती हूँ...ये कहते हैं सब्र करो।।
पारदर्शी चरित्र है मेरा, सभी भाव दिख जाते हैं।
घर के छोटे बच्चे अक्सर ऐसे ही रह जाते हैं।।
धैर्यवान व्यक्तित्व है इनका, विचलित नहीं ये होते हैं।
परिस्थिति हो चाहे जैसी, सब्र नहीं ये खोते हैं।।
©रश्मि बरनवाल "कृति"