दुःखी वृक्ष का मानव को संदेश
मेरी वन संपदा प्रजाति धीरे-धीरे विलुप्त हो
तो भी है मानव जाति क्यो तु सो रही हैं
तुझे कड़कती धूप में छांव देने हर कष्ट सहता हूं
हर मौसम सिर्फ तेरे लिए तटस्थ खड़ा रहता हूं
भुलो मत की अन्न जल मुझसे ही आता है
लेकिन तू अपने स्वार्थ के लिए मुझे काट जाता है
तेरी वेदनादायी कुल्हाड़ी से दर्द भरे घाव मुझे होते हैं
मेरी इस प्राणहीन दशा को देख निसर्ग प्रेमी भी रोते हैं
अरे ! मै क्यों इस मानव को अपनी दुःखी कथा सुना रहा
इनका चहेता कॉन्क्रीट वन का युग अब आ गया
©Nitin shubramanyam panjabi
#tree