हिज्र में तुम्हारे मुझे मुस्कुराना अच्छा नहीं लगता
यूं झूँठे अच्छा हाल बतलाना अच्छा नहीं लगता
सियाही -ए- फुरकत छाई जहन में इस कदर मेरे
के जुगनु का भी जगमगाना अच्छा नहीं लगता
हसरत -ए- दीदार -ए- सनम में मुद्दतों से ऐ यार
आंखों का मेरी यों तड़पड़ाना अच्छा नहीं लगता
आ जाओगे लौट कर जल्दी फिर तुम घर अपने
दिल को लेकिन यूं बरगलाना अच्छा नहीं लगता
पालना उम्मीद दिल में पहले तुमसे मिलने की
अपने आप को फिर समझाना अच्छा नहीं लगता
करे क्या ये "अश्क" बता, सफ़र-ए- तन्हा शब में
तुम बिन गजल भी गुनगुनाना अच्छा नहीं लगता
अरविन्द "अश्क"
©Arvind Rao
#तुम बिन