"खिश्तो से बने मकां भी ढह जाते है अगर क़याम न हो।
हम दश्त में रहने वालों को इतनी परेशानी कहाँ।।
और खुल्द की चाहत सबकी पूरी नही होती।
हम मुफलिसी में गुज़र करने वालो में इतनी चाहत कहाँ।।
-: ज्ञानेंद्र
कायम- ठहरना
दश्त- जंगल
खिश्तो-ईंट
खुल्द-स्वर्ग
मुफलिसी-गरीबी"