उफनीत मन स्थिर देह त्याग कर हुई,
देह संग दहेज़ ला वो बहुरिया कहलाई,
पहर पर पहरे लगे कुछ कम जो लाई,
दिन-रात कमाई फिर भी ना वो भाई,
पूछ रहे- आयशा तू क्यू लड़ ना पाई,
हसीं में दर्द छुपाती तू जल में क्यू समाई?
/Neha Narayan Singh.
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©Neha Narayan Singh
#Deepthoughts