White वो गांव की लड़की शहर में रहती थी,
मैं शहर तो गया , मुझमें गांव रह गया।।
मुझ जैसे कितनो से मिलके मैं हम बन गया,
उसका मिलना मगर बदलने का आलम बन गया।।
मेरे सपनो में उसकी आंखे, उसकी बातें,
उसके रस्ते, उसकी गलियां ।
उसका सपना बड़ा घर, नए लोग,
अच्छा जीवन, सारी खुशियां।।
कभी मिला नहीं, कोई गिला नहीं,
उसे समझा तो खूब मगर जाना नहीं।
कुछ बातें हुई तो सारे किस्से सुनाए,
उसकी मर्जी थी उसने माना नहीं।।
उसकी नजर किसी अच्छे पर थी शायद बेहतर पे,
मुझमें बदलाव अभी बाकी थे ।।
क्यूं मिलूं उसे मैं कैसे मुझे वो मिले,
कशमकश के दौर में,
यही ख्वाब मेरे साथी थे।।
मैंने प्रेम चुना था, बुरा भी कैसे सोचता,
उसके हर शब्दो में मेरी बदनामी थी।
समेट के स्वाभिमान चला, मैं हारा, प्रेम बचा पर,
सुरूप को प्रेम समझ लेना ये मेरी नादानी थी।।
तमाम कोशिशों को उसकी मंजूरी नहीं थी,
लौट आया मैं सवालों में प्रेम खोजकर
प्रेम तो था मगर वो जरूरी नहीं थी।।
सबको हक है चुनने को,
याकि मन या जीवन अच्छा।
प्रेम गांव में सहज है मिलना,
शहरों का बस भ्रम है अच्छा।।
©Vishwas Pradhan
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