फुरसत कहां मुस्कुराने की
वजह क्या हुई उसके जाने की
जानते हैं लौटकर आयेंगे नहीं
आदत फिर भी नहीं जाती घर सजाने की
किसका कसूर है और खतावार कौन है
किसी को तो ज़रूर लगी आदत इस ज़माने की
मैं ही कसूरवार हूं लगने लगा मुझे
वो बेकसूर थे ज़रूरत फिर क्यों पड़ी नज़रें झुकाने की
आप बेफिक्र हैं जीना भी आपको आता है
ज़िंदगी से नाराज़ हैं आदत भी नहीं खुद को खुद से मनाने की
शायर - बाबू कुरैशी
#किसी के न हुए