आज भी याद है ....मुझे तुम्हारे बदन की खुशबू....
औऱ वो चाँदनी रात.....तुम्हारी साँसों की गर्मी से.....
महक रही थी मेरी साँसे ....
औऱ तुम्हारी आँखों में क़ैद होने को... तरस रहा था मेरा वजूद........
मेरी मोहोब्बत को पनाह मिली थी .....
तुम्हरी नज़रों में .....जहाँ तुमने ......हल्के से,
मेरे लबों को छुआ था......उस हसीन मंज़र का गवाह बना था
ये चाँद......आज उसी मंजर को कैद करने की
ख्वाहिश में ये चाँद फिर निकला है...
मगर आज ये....
मुझे तन्हा पाकर यू ही घर लौट जायेगा
तुम अक्सर कहा करते थे
कि ज़िन्दगी के फ़लसफ़े भले ही हमें उलझा दे...
तुम्हारे हुस्न की कशिश .....मुझे तुमसे कभी दूर नही होने देगी
यू मिले न मिले मगर......यक़ीन करो
ख्वाबों ख़यालो में ..... हम रोज़ ही मिलते हैं...
© Kanupriya Rishimum
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