【तुम आते हो】
मैं खुद को भूल बैठा हूँ,
मगर तुम याद आते है।
ख़्वाबों में सताते हो,
रातों में रुलाते हो।
जब मुझसे दूर जाना था,
क्यों मेरे पास तुम आये।
मेरी पलकों पर अपने
ख़्वाब क्यों तुमने सजाये।
जुगनुओं को पकड़कर,
मैं तेरी तस्वीर को देखूं।
जो कभी थी नहीं हाथों में,
मैं उस लकीर को देखूं।
मेरी आँखों में अश्कों का,
तुम बनके सैलाब आते हो।
मैं खुद को भूल बैठा हूँ,
मगर तुम याद आते हो।
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'विकास शाहजहाँपुरी'
©Kavi Vikas Singh
कविता
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