*वृत्त और चौकोर से परे बिन्दु*
शिखा और विनीत बहुत ही अच्छे जिगरी यार थे।
एक लंबे वक्त से साथ रहते हुए एक दूसरे को बखूबी समझ भी लेते थे। चाहे अनकहा समझना हो।
मजाक करना हो या कुछ और। बिना किसी लेंगिक मतभेद के कह जाते थे
हर बात वो भी सबसे पहले एक दुसरे को।
एक दिन विनीत ने कहा शिखा तुम सच मे बहुत प्यारी हो ।
शिखा - (मजाकिया अंदाज में) तो फिर कर लें हम शादी ?
विनीत - (झुंझलाते हुए) नहीं यार बिल्कुल नहीं। तुम दोस्त अच्छी हो, घूमती फिरती मजाक करती हुई ।
तुम वो शादी वाला आइटम नहीं ।
शिखा को बचपन की रेखागणित की क्लास जैसा महसूस हुआ ।
जिसमें वो सभी के जैसे वृत्त और चोकोर लकीरों के सवाल नहीं समझ पाती थी ।
और वो चाहती भी नहीं थी सबके जैसे उन्हें समझना ।
ना वो चाहती थी चोकोर लकीरों के जैसे रसोई के चार दिवारी में सिमटना
ना वो चाहती थी वृत्त की परिधि खींच सरकारी नौकरी और घर के चक्कर में घूमना। जहाँ रसोई सर्वोपरि हो।
वो चाहती थी बिंदु बना कर सरपट दौड़ना औऱ उड़ना । पैरों से लकीरें खींचना।
शायद ऐसी लड़कियां जिन्हें ठहरा दिया जाता है। समाज के बाहर की ।
पल्लवी
©PALLAVI MISHRA
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