टूटे बिखरे ख्वाबों का श्मशान नजर आता हूँ,
देखो ना मुझे अब कितना उजड़ा कितना वीरान नजर आता हूँ…!
इतना लड़ा जमाना से की वो अब डर कर सहम गया होगा,
हर मोड़ पर है श्मशान वो जिंदा बच के कहाँ गया होगा..!
चन्द खुशियाँ ने बहुत इंतजार करवाया जिसने,
मारके वो ख्वाबों को अब लगता है वो अब जिंदा होगा..
नाखुनो के निशान बहता लहुँ देखकर,
हकीमों के पास भी इलाज नही जिसका,
वो अपने जख्म लेकर कभी इधर तो कभी उधर भटका होगा..!
बहुत बेरहमी से उजाड़ते गए ये दुनिया मेरी,
तुम्ही को हो मुबार ये दुनिया तेरी,
में तो अब इसे कब्रिस्तान कहता हूं..!
मखोटा से अब चेहरा को छुपा के मिलना,
सच जैसा फिर भरोसा दिला कर बोलना,
मुझे झूठा साबित कर बोलना,
अब फिर फरेबी बातें करनी हो तो नजर मिला कर बोलना..!
एक पथिक सुमन भट्ट...✍️
श्मशान नजर आता हूँ