संघर्षों के अग्निकुण्ड में, जो नित-प्रति खेला था,
अमर सपूत अमर बलिदानी, अद्भुत अलबेला था।
तिलक लगाकर मात्रभूमि की, मिट्टी के चन्दन का,
स्वाहा कर दी महायज्ञ में, जिसने अमल जवानी !
ऐसे महापुण्य पौरुष को, सत्-सत् नमन हमारा,
देवों के भी राजमहल में, गूँजे जिसकी बानी !
उसी अनूठे दिव्य रूप की, ज्योति है फिरने वाली,
घोर अँधेरों वाली फिर से, निशा है घिरने वाली!
ऐ भगत सिंह, ऐ दिव्य पुरुष, तुमको देश पुकारे,
घोर तिमिर को हरने आओ, भारत के उजियारे!!
©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'
#bhagatsingh #भगतसिंह #कविता