संघर्षों के अग्निकुण्ड में, जो नित-प्रति खेला था, | हिंदी Video

"संघर्षों के अग्निकुण्ड में, जो नित-प्रति खेला था, अमर सपूत अमर बलिदानी, अद्भुत अलबेला था। तिलक लगाकर मात्रभूमि की, मिट्टी के चन्दन का, स्वाहा कर दी महायज्ञ में, जिसने अमल जवानी ! ऐसे महापुण्य पौरुष को, सत्-सत् नमन हमारा, देवों के भी राजमहल में, गूँजे जिसकी बानी ! उसी अनूठे दिव्य रूप की, ज्योति है फिरने वाली, घोर अँधेरों वाली फिर से, निशा है घिरने वाली! ऐ भगत सिंह, ऐ दिव्य पुरुष, तुमको देश पुकारे, घोर तिमिर को हरने आओ, भारत के उजियारे!! ©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित' "

संघर्षों के अग्निकुण्ड में, जो नित-प्रति खेला था, अमर सपूत अमर बलिदानी, अद्भुत अलबेला था। तिलक लगाकर मात्रभूमि की, मिट्टी के चन्दन का, स्वाहा कर दी महायज्ञ में, जिसने अमल जवानी ! ऐसे महापुण्य पौरुष को, सत्-सत् नमन हमारा, देवों के भी राजमहल में, गूँजे जिसकी बानी ! उसी अनूठे दिव्य रूप की, ज्योति है फिरने वाली, घोर अँधेरों वाली फिर से, निशा है घिरने वाली! ऐ भगत सिंह, ऐ दिव्य पुरुष, तुमको देश पुकारे, घोर तिमिर को हरने आओ, भारत के उजियारे!! ©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'

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