ना जाओ सनम, थोड़ा जाओ ठहर,
नाम लिख दूं तुम्हारा, यहां रेत पर।
आशा के बीज बो, सींचे बिस्वास से,
प्रेम की उग रही है, फसल खेत पर।
इस सुहाने सफ़र की, ये सौगात है,
बिन तुम्हारे ना हो, अब कोई बात है।
तू जहां भी रहे, अब वहीं अपना घर।
नाम लिख..........।
हम कहां थे, कहां से कहां आ गए,
बिन मांगे ही, सारा जहां पा गए,
अब तो छोटा सा, लगने लगा ये शहर।
नाम लिख..........।
अब तो कोयलिया, बोलें इसी बाग में,
गुनगुनाते हैं, भौंरा नए राग में,
बैरी पतझड़ भी, अब तो हुआ बेअसर।
नाम लिख...........।
इक मछली फसी थी, कभी जाल में,
लहरें उठने लगीं, अब उसी ताल में,
जहां सूखे में, सालों गए थे गुजर।
नाम लिख..........।
©Kalpana Tomar
ना_जाओ_सनम
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