वो कितनी सुंदर थी
क्या बताएं वो कितनी सुन्दर थी!
तेज़ बरसात के महीने में
सनसनाती हुई हवा थी वो
होंठ से आ गिरी हथेली पर
कोई मासूम सी दुआ थी वो
सबके जैसी मगर अलग सबसे
एक थी वो हजारों - लाखों में
मंदिरों में जले दिए जैसे
वो उजाला था उसकी आंखों में
खनखनाती हुई हंसी उसकी
जैसी घुंघरू हज़ार बजते हो
और माथे पे जुल्फ का गिरना
जैसे तोरण से द्वार सजते हों
©Gaurav udvigna
#Fire