उसके हाथों में ऐसी गर्मी थी
छू ले तो ग्लेशियर पिघल जाए
खौल जाए बर्फ हिमालय की
वादियां दूध सी उबल जाए
जाने शकुंतलम के पन्नों से
बिन बताए वो कब निकल आई
कोई देख भी नही पाया,
वस्त्र बादल के वो बदल आई
उसके बाहों को रखके सिरहाने
कोई सोए तो फिर जागे क्या
कामनाओं के आखिरी तट पर
बस वही तो हैं, उससे आगे क्या!
©Gaurav udvigna
#PhisaltaSamay