उनका इंतजाम ऐ कयामत भी लाजवाब था
एक तरफ उनकी हंसी थी, एक तरफ मेरा तख्तोताज था
उनका वो यूं शर्मा के जाना और हमारा केवल उनके खातिर अपना वो ताज ठुकराना,
वो ठोकरे वो मेहनत व नाकाम सी कोशिशें
वो ताज मेरा मुझे चीख चीख के सुना रहा था
गर कमबख्त उस वक़्त भी मुझे उसी का चेहरा नजर आ रहा था.....
चेहरा उनका न चेहरा गर वाकई चेहरा था
स्वर्ग अप्सराएँ भी शर्माएं आंखों में तेज वो गहरा था
वो पुराने अधूरे ख्वाब, वो जिम्मेदारी हम सब खो चले थे ,
सच कहते है सच उस वक़्त वाकई हम उनके हो चले थे
अब वो घड़ी आई जीवन वो कड़ी आई, जीवनचक्री दोबारा दोहराई
और फिर मुझे अपनों की याद आई
बदला कुछ नही बस थोड़ा सा फर्क था
चीख कर समझाने वाले तख्तोताज हम पर हँस रहे थे
और ताज की साख पर जो हमने लगाए थे नाग प्रपंच वो हमें ही डस रहे थे...