उर छलनी कांटों से मेरा
तेरे पग पर फूल चढ़े थे
निपट अकेला वीराने में
सोचा भगवन साथ खड़े थे ।
टूट टूट बिखरा हर सपना
तूने छीन लिया हर अपना ।
बन अर्जुन गीता ज्ञान लिया था
कर्मों का फल मान लिया था
सब तेरी मर्जी बतलाकर
कब तक धैर्य बधाऊं
कैसे तुझ को शीश झुकाऊं।
©Sachin Upadhyay