महंगाई के दौर की देशभक्ति बड़ी सस्ती है साहेब, पहले

"महंगाई के दौर की देशभक्ति बड़ी सस्ती है साहेब, पहले फाँसी पर लटकना होता था, अब सिर्फ घर पर अटकना हैं। कवि कार्तिकेय शर्मा "स्पर्श""

 महंगाई के दौर की देशभक्ति बड़ी सस्ती है साहेब,
पहले फाँसी पर लटकना होता था, अब सिर्फ घर पर अटकना हैं।




कवि कार्तिकेय शर्मा "स्पर्श"

महंगाई के दौर की देशभक्ति बड़ी सस्ती है साहेब, पहले फाँसी पर लटकना होता था, अब सिर्फ घर पर अटकना हैं। कवि कार्तिकेय शर्मा "स्पर्श"

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