उसकी सूरत मेरे दिल से उतरती रही , मुझसे किये वादों | हिंदी Shayari

"उसकी सूरत मेरे दिल से उतरती रही , मुझसे किये वादों से वो मुकरती रही। लगा के मुझे ये श्रृंगार रस है मेरे लिए , पर रक़ीब के लिए सजती-सँवरती रही छोड़ा उसने मुझे किसी और कि ख़ातिर , काँच की तरह टूट के रोज़ बिखरती रही। अक्सर जहाँ मिला करते थे हम दोनों , अब उन सभी गलियोंसे वो गुज़रती रही। जहाँ से उसे दिखे मुझ गरीब का ख़ाना , गली के चौराहें पर घंटो वो ठहरती रही। ©आराधना"

 उसकी सूरत मेरे दिल से उतरती रही ,
मुझसे किये वादों से वो मुकरती रही।

लगा के मुझे ये श्रृंगार रस है मेरे लिए  ,
पर रक़ीब के लिए सजती-सँवरती रही

छोड़ा उसने मुझे किसी और कि ख़ातिर ,
काँच की तरह टूट के रोज़ बिखरती रही। 

अक्सर जहाँ मिला करते थे हम दोनों ,
अब उन सभी गलियोंसे वो गुज़रती रही।

जहाँ से उसे दिखे मुझ गरीब का ख़ाना ,
गली के चौराहें पर घंटो वो ठहरती रही।
©आराधना

उसकी सूरत मेरे दिल से उतरती रही , मुझसे किये वादों से वो मुकरती रही। लगा के मुझे ये श्रृंगार रस है मेरे लिए , पर रक़ीब के लिए सजती-सँवरती रही छोड़ा उसने मुझे किसी और कि ख़ातिर , काँच की तरह टूट के रोज़ बिखरती रही। अक्सर जहाँ मिला करते थे हम दोनों , अब उन सभी गलियोंसे वो गुज़रती रही। जहाँ से उसे दिखे मुझ गरीब का ख़ाना , गली के चौराहें पर घंटो वो ठहरती रही। ©आराधना

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