"कितनी स्मृतियां घुल गई,घुट कर सपने पीने में
कितनी यादें मिट गई, मिलकर रिश्ते सीने में
बेड़ियाँ टूट गई स्वतः अपनेपन की अंगड़ाई में
कितनी ख़्वाईसे दफन हुई खुलकर जीवन जीने में
~ सत्यम बरनवाल"
कितनी स्मृतियां घुल गई,घुट कर सपने पीने में
कितनी यादें मिट गई, मिलकर रिश्ते सीने में
बेड़ियाँ टूट गई स्वतः अपनेपन की अंगड़ाई में
कितनी ख़्वाईसे दफन हुई खुलकर जीवन जीने में
~ सत्यम बरनवाल