समंदर सी गहरी हैं ज़िन्दगी की ये डगर,
और मछली की तरह हम उसमें खेलते उछलते हैं।
डरते है कभी बड़ी मछलियों से,
तो कभी अपनों से बिछड़ने से डर जाते हैैं।।
कभी गुस्से की लहर तो कभी खींचती कोई डोर,
भय और पछतावे की निशानी छोड़ जाती हैं।
बढ़ती उम्र और अनुभव से समंदर सी ज़िन्दगी छोटी लगने लग जाती हैं।।
©Kaagzi_Lafz
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