*अदब का दायरा*
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अदब का दायरा है सलीक़े से पेश आया किजये।
आदाब, नमस्ते कहकर मुलाहज़ा फरमाया किजये।
नज़्म,ग़ज़ल, छंद या रुबाई सुनानी हो कभी,
बुलन्द आवाज़ में, महफ़िल सजाया किजये।
छोटे हों या हों बड़े, सब के हैं अलग अंदाज़,
हक़ीर बोल किसी पे रुतबा न आज़माया किजये।
फलदार दरख़्त ही अक्सर झुक जाते हैं साहेब,
ज़ुबाँ शीरीं रख, पत्थर भी पिघलाया किजये।
ग़म के बादल छाए रहते हैं, यहाँ हर किसी पे,
सिर्फ़ दिल में नहीं, लबों पे भी मुस्कान लाया किजये
हक़ीर - तुच्छ/छोटा
अदब - विनय/सम्मान
दरख़्त-पेड़
ज़ुबाँ शीरीं - मीठी ज़ुबाँ
*©Nilofar Farooqui Tauseef ✍*
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