छपते-छपते रह गया,
बचते-बचते बह गया,
चश्मदीद था एक अदद,
जाते-जाते कह गया,
मौत के साये में चुप था,
दर्द ज़माने का सह गया,
मिट्टी का जर्जर घर था,
इस बारिश में ढह गया,
छोड़ गया घर-आंगन सूना,
मुद्दों से कर सुलह गया,
पता ठिकाना बता कोई,
जाने कौन सी जगह गया,
मिटा गया रंजिशें तमाम,
'गुंजन' लेकर कलह गया,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
प्रयागराज उ॰प्र॰
©Shashi Bhushan Mishra
#इस बारिश में ढह गया#