मनुज तू है अकेला सब सर्वज्ञ तू फिर भी विषय में रक् | हिंदी कविता

"मनुज तू है अकेला सब सर्वज्ञ तू फिर भी विषय में रक्त तू तेरा मोह दुःख का मूल है फिर भी करता भूल है जो आज है साथ कल नहीं भी तो होगा जीवन छोटा है धन,ख्याति ,सम्मान सभी के पास है उसमें नया क्या है? तेरा मोह है दोष तेरा जो दुख का जनक है तेरा विचलित होना तेरे मन का विकार धीर वीर है तू आत्मरुप पहचान तू था अकेला ,है अकेला शांतावस्था में भी तू है अकेला|| ©मनीष भट्ट"

 मनुज तू है अकेला
सब सर्वज्ञ तू
फिर भी विषय में रक्त तू
तेरा मोह दुःख का मूल है
फिर भी करता भूल है
जो आज है साथ
कल नहीं भी तो होगा
जीवन छोटा है
धन,ख्याति ,सम्मान
सभी के पास है
उसमें नया क्या है?
तेरा मोह है दोष तेरा 
जो दुख का जनक है
तेरा विचलित होना
तेरे मन का विकार
धीर वीर है तू
आत्मरुप पहचान
तू था अकेला ,है अकेला
शांतावस्था में भी 
तू है अकेला||

©मनीष भट्ट

मनुज तू है अकेला सब सर्वज्ञ तू फिर भी विषय में रक्त तू तेरा मोह दुःख का मूल है फिर भी करता भूल है जो आज है साथ कल नहीं भी तो होगा जीवन छोटा है धन,ख्याति ,सम्मान सभी के पास है उसमें नया क्या है? तेरा मोह है दोष तेरा जो दुख का जनक है तेरा विचलित होना तेरे मन का विकार धीर वीर है तू आत्मरुप पहचान तू था अकेला ,है अकेला शांतावस्था में भी तू है अकेला|| ©मनीष भट्ट

तू है अकेला

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