कट रही है जिंदगी जैसे जी रहे वनवास में,
हम तो बैंक वाले है डयूटी करना हर हाल में,
हम तड़पते हैं डयूटी में, परिवार चिंतित है गाँव में,
जिंदगी मानव ठहर सी गई है,
बेड़ी जकड़ी हो पांव में,
घर में राशन नहीं फिर भी डयूटी जाते हैं,
सारी दुकानें बंद हो जाती है
जब हम वापस आतें है,
माँ बाप सिसक कर पूछ रहे बेटा कैसे खाते हो,
जब पूरा देश बंद है तो तुम क्यों डयूटी जाते हो,
यहाँ सबकुछ मिल रहा है
झूठ बोल माँ को समझाते हैं,
देश के लिये है यह जीवन ईसलिए डयूटी जाते हैं,
सेना शिछक डाक्टर नहीं है अतः सम्मान नहीं हम पाते हैं,
हम तो बैंक वाले है डयूटी करना हर हाल में.
- MUKESH SRIVASTAVA