चल साथ मेरे और इस कायनात को भी लेले,
जीवन है!
यहां हर रोज़ ही लगेंगें दुखों के मेले,
पास जो भी होता है, अपना सा लग जाता है!
दूर जानें पे लगे, बदल जाता है,
चार पल की जिंदगी है सबके साथ बितानी है,
एक एक पल की कीमत यहीं तो चुकानी है,
कुछ बुढ़ापा तो कुछ पल की ही ये जवानी है,
सफ़र का अंत क्या है,
सबको याद दिलानी है कि
ज़िन्दगी और कुछ भी नहीं तेरी मेरी कहानी है!!
"अम्बुज"
©ambuj mishra