औंधा पड़ा श्याम पट हो जैसे
कल नन्ही सुबह, सुरज लिखेगी...
सजा देगी झालर, बूटे औ पत्ते
गीले हाथों से, कई रंग भरेगी....
खाली बचेंगे,कोई कोने भी नहीं
दोनों एड़ी उठाये, पंछी-पंछी भरेगी....
और..,
एक बिन्दु बन लग जाउंगा मैं भी
गर थोड़ी सी चमक मुझमें रहेगी...
🖋️ नरेन्द्र
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