मोहब्बत के सफर में कोई अकेला न मिला
शायरों की महफिल में कोई दोबारा न मिला
होते हम भी आज उनकी बाहों में
मगर उधर से हमें कोई इशारा न मिला
समंदर की कश्ती को कोई किनारा ना मिला
हारे हुए को कोई सहारा ना मिला
और जीत जाते हम भी अगली बाजी में
मगर जीता हुआ बाजीगर हमें कभी ना मिला
तमाम इश्क की उम्र में मोहब्बत का जाम ना मिला
काफी इंतजार के बाद भी कोई पैगाम न मिला
आखिरी सांस तक लड़ते रहे मोहब्बत के कटघरे में
मगर फिर भी मोहब्बत का कोई अंजाम ना मिला
✍ विशाल प्रजापत
©Vishal Prajapat
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