वैसे हर रंग की कलम है दराज में
पर रंग कोई इतना गहरा नहीं की
फर्क करदे मेरे बीते कल और आज में ,
फिर वही साज लिख रहा हूं मैं ...।
पुराने लफ्ज़,पुरानी हलचल सब संजो रहा हूं मैं ।
फिर वही साज लिख रहा हूं मैं ...।
पन्नों की सिलवटों के बीच शब्दोें का अड़ा तिरछापन
पिरो रहा हूं मैं .
फिर वही साज लिख रहा हूं मैं ...
हर ढलती शाम फिर से समझ रहा हूं मैं
कई कहानियों के बीच चल रहा हूं मैं
फिर वही सब लिख रहा हूं मैं ...
पुराने मर्म पर नए मरहम मल रहा हूं मैं..
फिर वही सब लिख रहा हूं मैं .
हर रात पुराने ख़्वाब में नई करवटें बदल रहा हूं मैं ..
देखो ना ! फिर वही साज लिख रहा हूं मैं ..
अधूरे , पुराने, गमगीन ,बदगुमा, निराश किरदार रच रहा हूं मैं .....
फिर वही सब लिख रहा हूं मैं !
©sukhwant kumar saket
सब लिख रहा हूं मैं ।।
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