मत पूछ की शहर में ये तनाव कैसा है
तू गांव से आया है बता गाँव कैसा है
रात निकलती नही थी फूटने के डर से
उस तालाब में पानी का भराव कैसा है
सुना है पुलिस करती है मसले हल
उस चौपाल पर फिर जमाव कैसा है
जाती थी सेवइयां लौट आती थी मिठाई
पहले था त्यौहारो पर वो लगाव कैसा है
वो जो राहगीरों को रास्ता दिखाता था
उस पागल पर मरने का दबाव कैसा है
©Suraj Goswami
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