वेदना का वेग बढ़ता जा रहा था
ज़ब्त की जंजीर ढीली हो रही थी
आपसे संवाद करते जा रहे थे
और नयन की कोर गीली हो रही थी
1)ऐशगाहों से प्रणय के
मोल धोखे खा रहे थे
स्वप्न तुमको महल वाले
दूर लेकर जा रहें थे
तुमको जीवन का प्रबंधन
खूब सिखलाया गया था
और हमको प्रेम में बस
त्याग बतलाया गया था
प्रीत को अवहेलना के स्वर मिलें तो
त्याग की वंशी सुरीली हो रही थी।
और नयन की कोर गीली.......
©Upendra Bajpai
#geet
#AloneInCity