जहां से गुजर के कुछ साल पहले गये थे मेरी इश्क़ को | हिंदी शायरी

"जहां से गुजर के कुछ साल पहले गये थे मेरी इश्क़ को मुकर के बेइज्जत किये थे अरे ओ हसीना .... फिर से उसी गलियो में आ गये हो फर्क इतना सा है वक्त वो तेरा था और ये जमी , महफिल किराये का अब हालातो से सब कुछ खरीद लिया हूँ और ये गम के सारे आँसू छीट के बंजर समा को हरा कर दिया हूँ ©Aatish Safar"

 जहां से गुजर के कुछ साल पहले गये थे 
मेरी इश्क़ को मुकर के बेइज्जत किये थे 
अरे ओ हसीना  .... 
फिर से उसी गलियो में आ गये हो 
फर्क इतना सा है वक्त वो तेरा था 
और ये जमी , महफिल किराये का 
अब हालातो से सब कुछ खरीद लिया हूँ 
और ये गम के सारे आँसू छीट के 
बंजर समा को हरा कर दिया हूँ

©Aatish Safar

जहां से गुजर के कुछ साल पहले गये थे मेरी इश्क़ को मुकर के बेइज्जत किये थे अरे ओ हसीना .... फिर से उसी गलियो में आ गये हो फर्क इतना सा है वक्त वो तेरा था और ये जमी , महफिल किराये का अब हालातो से सब कुछ खरीद लिया हूँ और ये गम के सारे आँसू छीट के बंजर समा को हरा कर दिया हूँ ©Aatish Safar

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