इश्क होता गया, फर्क बढ़ता गया
मुझमें तुझ में कहीं, कुछ पनपता गया
तू समंदर सा था, मैं नदी हो गया
तुझमें मिल के कहीं, गुमशुदा हो गया
मैं ज़मी पर उगा, तू था नभ पर सजा
बोसा लेने तेरा, मैं फलक तक गया
ज़र्रा ज़र्रा मेरा,गालीबन था तेरा
तेरी पलकों का दर, आशना था मेरा
मुझको बूढ़ा शजर,मन्नतों से मिला
तेरे आंगन में,था जन्नतों सा समां
तेरी हसरत जहां,मेरे हिस्से कहां
इश्क़ मेरे लिए,बन गया इम्तेहा
रात तन्हा हुई, दिन अकेला हुआ
फलसफा हिज्र का,जो था होना हुआ
जुस्तजू में तेरी,वक्त पानी हुआ
हर सवेरा मेरा,फ़र्दा फानी हुआ
क़ायदा इश्क का,आतिशों में जला
दर्द जिस्मों से गुज़रा,रूहानी हुआ
अपना किस्सा था जो,वो कहानी हुआ
Arshemah Siddiq Adab
©Arshemah '
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