भटकते हुए अनजान रस्ते पे चले, कहीं पे रोशनी मिली | हिंदी विचार

"भटकते हुए अनजान रस्ते पे चले, कहीं पे रोशनी मिली तो कहीं पे अंधेरा ,, कुछ ख्वाब मुक्कमल किए तो कहीं मिला सवेरा ।।। ©Ladle Kalakar"

 भटकते हुए अनजान रस्ते पे चले,
कहीं पे रोशनी मिली 
तो कहीं पे अंधेरा ,,
कुछ ख्वाब मुक्कमल किए
तो कहीं मिला सवेरा ।।।

©Ladle Kalakar

भटकते हुए अनजान रस्ते पे चले, कहीं पे रोशनी मिली तो कहीं पे अंधेरा ,, कुछ ख्वाब मुक्कमल किए तो कहीं मिला सवेरा ।।। ©Ladle Kalakar

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