तृष्णा मोह ना छूटे मोह से ,का तो करूं जतन कुंठित म

"तृष्णा मोह ना छूटे मोह से ,का तो करूं जतन कुंठित मस्तिष्क, विचलित है मन। द्वेष भाव भीतर बसो ,बेशक सुंदर तन अहम नीचता दे रहो, ना मिलिहें भगवन! ©शून्य"

 तृष्णा मोह ना छूटे मोह से ,का तो करूं जतन
कुंठित मस्तिष्क, विचलित है मन।
द्वेष भाव भीतर बसो ,बेशक सुंदर तन
अहम नीचता दे रहो, ना मिलिहें भगवन!

©शून्य

तृष्णा मोह ना छूटे मोह से ,का तो करूं जतन कुंठित मस्तिष्क, विचलित है मन। द्वेष भाव भीतर बसो ,बेशक सुंदर तन अहम नीचता दे रहो, ना मिलिहें भगवन! ©शून्य

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