कौन कहे तुम अमर रहोगे?
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सहज नही रह पाओगे यदि
अपना आपा खो डाला,
खोई दुनिया मे ढूँढ स्वयं को
अपना"आप"तुम रख लेना,
उपचार नहीं विद्वेष का लेकिन
कर प्रयत्न तुम यह लेना,
कौन कहे तुम अमर रहोगे
भ्रम वर्जित कर रह लेना।
तुम कब ऐसे निर्मम थे
क्या आज तुम्हारा रूप हुआ,
तुमसे तो आसान बहुत था
कटु वचनों को कह लेना,
तुम थे अपनी बात के पक्के
बन प्रतीक तुम सह लेना,
कौन कहे तुम अमर रहोगे
भ्रम वर्जित कर रह लेना।
मिला तुम्हे है मानव जीवन
तो मानव भी बन जाओ,
पहले सत्य परख लो यारों
फिर लहरों में बह लेना,
सरल नहीं है टूटे घर की
कठिन कहानी कह लेना,
कौन कहे तुम अमर रहोगे
भ्रम वर्जित कर रह लेना।
©Rakesh Lalit
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