"हवा ने उनकी ज़ुल्फ़ों को कुछ यूँ छुआ,
لپٹ جاتی ہے عارض سے کبھی شانوں پہ بل کھاتی
ہے کہتی کیا خمِ گیسو سماعت کر کے دیکھو نا
लिपट जाती है आरिज़ से कभी शानों पे बलखाती
है कहती क्या ख़म ए गेसू समाअत कर के देखो ना"
हवा ने उनकी ज़ुल्फ़ों को कुछ यूँ छुआ,
لپٹ جاتی ہے عارض سے کبھی شانوں پہ بل کھاتی
ہے کہتی کیا خمِ گیسو سماعت کر کے دیکھو نا
लिपट जाती है आरिज़ से कभी शानों पे बलखाती
है कहती क्या ख़म ए गेसू समाअत कर के देखो ना